Chhattisgarh
छत्तीसगढ़ से दिल्ली पहुंचा आंदोलन, सरकार से लगाई गुहार- पूछा मेरा कसूर क्या है? जानिए डिटेल
छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके के लोग आंदोलन करने दिल्ली के जन्तर-मन्तर पहुंचे। लोगों ने सरकार से अपनी मांगे पूरी करने के लिए गुहार लगाई। साथ ही पूछा- बताए मेरा कसूर क्या है? पढ़िए डिटेल
दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर छत्तीसगढ़ के बक्सर से आए लोग धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। आंदोलन में शामिल कई लोगों के हाथ, पैर या आंखे नहीं है। वजह है हादसा, जिसमें इन लोगों ने अपना शरीर गवा दिया है। ये लोग सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि इनकी मांगे पूरी की जाएं। साथ ही सरकार से पूछ रहे हैं कि इनका कसूर क्या है? आंदोलन में शामिल लोग माओवाद मुर्दाबाद और नक्सलवाद खत्म करो जैसे नारे लिखी हुईं तख्तियां टागे थे। आइए जानते हैं इन लोगों की असल मांगे और पहचान…
प्रदर्शन कर रही भीड़ में कौन लोग हैं?
इस भीड़ के अधिकतर लोग छत्तीसगढ़ के बस्तर जिला में रहने वाले हैं और किसी ना किसी तरह से नक्सलियों की हिंसा का शिकार हैं। शारीरिक, मानसिक और आर्थिक सभी स्तरों पर ये लोग पीडित हैं। छत्तीसगढ़ से दिल्ली आकर सरकार से न्याय और शांती की गुहार लगा रहे हैं। इस कारण शांती से बैठकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। बस्तर शांति समिति के तहत ये लोग प्रदर्शन कर रहे हैं।
हिंसा झेल रहा इलाका पहुंचा तबाही के कगार पर
बस्तर शांति समिति के समन्वयक मंगूराम कावड़े ने बताया कि हम दशकों से नक्सली हिंसा से पीड़ित हैं। हमारे गांव तबाह हो चुके हैं और हमारा क्षेत्र विकास से अछूता रह गया है। हम लोगों की मांग है कि हमारी आवाज सुनी जाए और हमें हिंसा से निजात दिलाया जाए।
यहां विकलांगता जन्मजात नहीं, बल्कि नक्सलियों की देन है
आंदोलन में आए गुड्डूराम लेकाम विकलांग हैं। इनकी उम्र महज 18 साल है। इनकी विकलांगता जन्मजात नहीं है। दोस्तों के साथ हंसते-खेलते लेकाम एक दिन अचानक अपना पैर गंवा बैठे। उन्होंने बताया कि नक्सलियों द्वारा लगाए गए लैंडमाइन पर उनका पैर रख गया था। बम फटने के कारण उन्होंने अपनी टांग गवा दी थी। आंदोलन में मौजूद हर पीड़ित की अपनी दर्दनाक कहानी है, जिसके तार नक्सली हिंसा से जुड़ते हैं।
मैं खामोश बस्तर हूं, लेकिन आज बोल रहा हूं
लेकाम कहते हैं कि मैं नहीं चाहता कि इस दर्द से कोई और गुजरे। इसलिए इलाके से नक्सलियों का सफाया जरुरी है। इसलिए हम आंदोलनकारी एक आवाज में सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि इलाके को नक्सलियों से मुक्त कराया जाए। आंदोलनकारियों के हाथों में तख्ती बैनर हैं। उनमें लिखा हुआ है कि मैं खामोश बस्तर हूं, लेकिन आज बोल रहा हूं।