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कानून न्याय का साधन है, उत्पीड़न का साधन नहीं; छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा

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कानून न्याय का साधन है, उत्पीड़न का साधन नहीं; छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा


छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने कहा कि न्यायिक अधिकारी जनता के विश्वास के संरक्षक हैं तथा कानून का इस्तेमाल हासिल करने के न्याय के साधन के रूप में किया जाना चाहिए, उत्पीड़न के साधन के रूप में नहीं।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने रविवार को कहा कि न्यायिक अधिकारी जनता के विश्वास के संरक्षक हैं तथा कानून का इस्तेमाल हासिल करने के न्याय के साधन के रूप में किया जाना चाहिए, उत्पीड़न के साधन के रूप में नहीं।

छत्तीसगढ़ राज्य न्यायिक अकादमी द्वारा रायपुर में आयोजित न्यायिक अधिकारियों की संभागीय न्यायिक संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि आम लोग न्यायपालिका से निष्पक्ष और शीघ्र न्याय की उम्मीद करते हैं।

जस्टिस रमेश सिन्हा ने दीवानी मुकदमों में अपनाई जा रही विलंबकारी रणनीति तथा न्यायिक अधिकारियों द्वारा साहसिक निर्णय लेने में हिचकिचाहट को लेकर भी चिंता जताई।

जस्टिस सिन्हा ने कहा, “मैं सभी न्यायिक अधिकारियों से अपने न्यायिक कर्तव्यों का निर्भीकता और विवेकपूर्ण तरीके से पालन करने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह करता हूं कि कानून का इस्तेमाल उत्पीड़न के साधन के रूप में नहीं बल्कि न्याय के साधन के रूप में किया जाना चाहिए।”

उन्होंने न्यायिक अधिकारियों को न्याय दिलाने में हाईकोर्ट के सहयोग का आश्वासन दिया।

सिन्हा ने कहा, “एक आम आदमी न्यायपालिका से क्या उम्मीद करता है? वह न्याय चाहता है – निष्पक्ष और त्वरित। ऐसी उम्मीदों को पूरा करने के लिए, एक न्यायाधीश को, सीजर की पत्नी की तरह, संदेह से परे रहना चाहिए, स्थिर विवेक द्वारा निर्देशित होना चाहिए, जबकि अपने कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी और बौद्धिक ईमानदारी के साथ करना चाहिए।”

उन्होंने जनता के विश्वास के संरक्षक के रूप में न्यायिक अधिकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका और निष्पक्ष और त्वरित न्याय देने के उनके दायित्व पर जोर दिया।

एक सरकारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि चीफ जस्टिस ने कानून की गतिशील प्रकृति पर भी जोर दिया, साथ ही समाज के सामने आने वाली चुनौतियों पर भी जोर दिया, जिसके लिए निरंतर सीखने और अनुकूल रहने की आवश्यकता है।

चीफ जस्टिस ने बलात्कार पीड़िताओं के लिए गर्भावस्था का चिकित्सीय समापन अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्वयन के जटिल मुद्दे पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि कानूनी प्रावधानों के बावजूद यदि पीड़िता को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर होना पड़ता है, तो यह व्यावहारिक रूप से कानून को लागू करने में अंतर को दर्शाता है।

उन्होंने ऐसे संवेदनशील मामलों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए इंटरैक्टिव सीखने के अनुभवों और कानूनी प्रावधानों की गहरी समझ की आवश्यकता की ओर इशारा किया।

चीफ जस्टिस ने आधुनिक न्याय प्रणाली में आर्टिफिशियल इंंटेलिजेंस (एआई), टेक्नोलॉजी और फॉरेंसिक एविडेंस को समझने के महत्व पर भी प्रकाश डाला।

 प्रसिद्ध न्यायविद नानी पालकीवाला का हवाला देते हुए चीफ जस्टिस सिन्हा ने कहा कि समाज के विकास के दौरान कानून स्थिर नहीं रह सकता। इस सेमिनार में चार सिविल जिलों – रायपुर, बलौदा बाजार, महासमुंद और धमतरी के 111 न्यायिक अधिकारियों ने भाग लिया। 



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