Punjab
bjp is not strong in punjab so why congress and aap leaders joining – India Hindi News

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पंजाब में भाजपा को अब तक सत्ता की रेस से बाहर ही देखा जाता रहा है। लोकसभा चुनाव में भी वह कभी चौंकाने वाली सफलता हासिल नहीं कर सकी। फिर बीते दो दिनों में जब कांग्रेस सांसद रवनीत सिंह बिट्टू से लेकर AAP के सुशील कुमार रिंकू तक ने भाजपा की सदस्यता ली तो यह सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। भाजपा को एक तरफ पंजाब में कमजोर दल के रूप में देखा जा रहा है तो दूसरी तरफ अन्य दलों के नेता उसमें क्यों आ रहे हैं। वह भी तब जब भाजपा ने पंजाब में बीते 28 सालों में पहली बार अकेले ही लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला लिया है।
इसकी वजह यह मानी जा रही है कि भाजपा शहरी क्षेत्रों में मजबूत है। इसके अलावा कांग्रेस ने जिस तरह आम आदमी पार्टी के साथ INDIA अलायंस में रहने का फैसला लिया है, उससे उसकी संभावनाएं कमजोर हुई हैं। अकाली दल अकेले है और वह पहले के मुकाबले मजबूत नहीं है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के कुछ नेताओं को लगता है कि वह भाजपा में जाकर जीत पा सकते हैं। रवनीत सिंह बिट्टू, सुशील कुमार रिंकू और परणीत कौर जैसे नेताओं को भाजपा टिकट भी दे सकती है। रवनीत सिंह बिट्टू का पंजाब की सियासत में बड़ा कद है और उनके दादा बेअंत सिंह सूबे के सीएम रहे हैं।
वहीं परणीत कौर भी जट सिख हैं, जो पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी हैं। राजनयिक रहे तरणजीत सिंह संधू को भी भाजपा ने पार्टी में शामिल कराया है, वह भी जट सिख हैं। दरअसल पंजाब में भाजपा को ऐसे नेताओं की तलाश रही है, जो जट सिख हों। सिख परंपरा से जुड़े नेताओं के माध्यम से भाजपा वहां के पंथिक लोगों में पैठ बनाना चाहती है, जिस पर अब तक अकाली दल दावा करता रहा है। सिर्फ हिंदू वोटों के भरोसे भाजपा को सफलता मुश्किल लग रही है। ऐसे में इन नेताओं की एंट्री उसके लिए मायने रखती है। बता दें कि मनप्रीत बादल पहले ही भाजपा में शामिल हैं।
इन चेहरों के चलते भाजपा को ऐसे जट सिख नेता मिल गए हैं, जो पंजाब की जनता में जाना-पहचाना नाम हैं। अब तक भाजपा पंजाब में शहरों की पार्टी के तौर पर सीमित रही है। इनके माध्यम से वह ग्रामीण इलाकों में भी पैठ बनाने की कोशिश करेगी। तरणजीत सिंह संधू की बात करें तो वह ऐसे परिवार से आते हैं, जिसका सिखों में बहुत सम्मान रहा है। उनके दादा सरदार तेज सिंह समुंदरी शिरोणमि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के संस्थापकों में से रहे हैं। गौरतलब है कि अकाली दल की राजनीति ही एसजीपीसी पर आधारित रही है। ऐसे में संधू के आने से उसमें भी सेंध लगाने का मौका मिलेगा।