Uttarakhand
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हरिद्वार लोकसभा सीट के टिकट का फैसला करने में कांग्रेस को 11 दिन अतिरिक्त समय लेना पड़ा, लेकिन टिकट का फैसला आखिरकार पूर्व सीएम हरीश रावत की पसंद के अनुसार ही हुआ। एक तरह से पार्टी को अपने सबसे वरिष्ठ नेता की जिद के आगे झुकना पड़ा।
कांग्रेस के तीन प्रत्याशियों की घोषणा 12 मार्च को ही हो चुकी थी, लेकिन हरिद्वार सीट पर हरीश रावत के अड़ जाने के कारण टिकट वितरण का मामला कुछ ज्यादा ही लंबा खिंच गया। दरअसल, इस सीट पर एक तरफ जहां खुद हरीश परिवार (हरीश रावत और उनके पुत्र वीरेंद्र रावत) दावेदार थे तो दूसरी तरफ प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा और पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत भी दावेदार बने हुए थे।
इसमें से हरक सिंह भी कुछ समय पहले खुद ही पीछे हट गए, इस कारण आखिरी दावेदार हरीश परिवार और करन माहरा ही बचे रहे, लेकिन अंतिम राउंड आने तक पार्टी अन्य सभी विकल्पों के मुकाबले हरीश को ही मैदान में उतरने के लिए मनाती रही, दूसरी तरफ हरीश रावत अपने बेटे के लिए चट्टान की तरह जमे रहे। इसमें उन्हें अब सफलता मिल गई है। पिता की पैरवी के चलते ही आखिरकार वीरेंद्र रावत अपने सगे मामा करन माहरा से आगे निकल गए।
वीरेंद्र की शुरुआत सीधे टिकट से वीरेंद्र रावत को पार्टी ने सीधे लोकसभा का टिकट देकर बड़ा मौका दिया है, हालांकि वो पिछली बार खानपुर से विधानसभा तैयारी कर रहे थे, लेकिन तब उन्हें टिकट नहीं मिल पाया। इस तरह वीरेंद्र रावत की लांचिंग अब ज्यादा बड़े मंच से हो रही है।
मुझ जैसे मामूली कार्यकर्ता पर भरोसा जताने के लिए सीनियर लीडर हरीश रावत, करन माहरा, यशपाल आर्य, प्रीतम सिंह और गणेश गोदियाल का हार्दिक आभार। हरिद्वार में मेरे परिवार के द्वारा सेवा की एक लंबी परंपरा रही है। मैं 2009 से ही हरिद्वार की जनता के बीच सक्रिय हूं, मैं इसी परंपरा को आगे बढ़ाने का प्रयास करुंगा।
वीरेंद्र रावत, कांग्रेस प्रत्याशी
वीरेंद्र रावत
जन्मतिथि 15 मार्च 1975
शिक्षा एमकॉम
राजनीति दयाल सिंह कॉलेज, नई दिल्ली छात्रसंघ अध्यक्ष (1996-97)
यूथ कांगेस के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष, वर्तमान में कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष
बेटी के बाद बेटे की सियासी पारी शुरू
वीरेंद्र रावत को टिकट मिलने के साथ ही पूर्व सीएम हरीश रावत के परिवार से एक और सदस्य का चुनावी राजनीति का श्रीगणेश हो गया है। रावत की पुत्री अनुपमा रावत पिछले विधानसभा चुनावों में हरिद्वार ग्रामीण से विधायक बन चुकी हैं। हरीश रावत की पत्नी भी लोकसभा चुनाव लड़ चुकी है।
वीरेंद्र रावत यूथ कांग्रेस से लेकर प्रदेश कांग्रेस कमेटी में विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं। वो 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए खानपुर से चुनावी तैयारी कर रहे थे, लेकिन तब हरीश खुद लालकुआं और अनुपमा रावत हरिद्वार ग्रामीण से प्रत्याशी होने के कारण रावत परिवार के तीसरे सदस्य को टिकट नहीं मिल पाया।
वीरेंद्र रावत को टिकट मिलने में पिता हरीश रावत की पैरवी अहम रही, हरीश रावत अपनी सेहत और वीरेंद्र की उम्र के साथ ही सक्रियता को देखते हुए, अपनी राजनैतिक विरासत उन्हें सौंपने की पैरवी कर रहे थे। हालांकि आला कमान पहले हरीश रावत को ही चुनाव मैदान में उतारने का पक्षधर था, लेकिन हरीश की मजबूत पैरवी के चलते आखिरकार पार्टी को उनकी बात पर ही मुहर लगानी पड़ी।