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BJPs organization or Ashok Gehlot magic who has the upper hand in Rajasthan understand

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BJPs organization or Ashok Gehlot magic who has the upper hand in Rajasthan understand


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चुनाव आयोग ने देशभर में लोकसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान कर दिया है। ऐलान से पहले ही पार्टियों ने अपनी तैयारियां तेज कर दी थीं। ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए राजस्थान में जहां एक तरफ सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को अपने मजबूत संगठन का फायदा मिलने की उम्मीद है तो वहीं कांग्रेस को ‘राजनीति के जादूगर’ कहे जाने वाले पार्टी के दिग्गज नेता अशोक गहलोत की राजनीतिक पकड़ से बाजी पलटने की उम्मीद है। राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों पर बीते दो लोकसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन का दबदबा कायम रहा है। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने जीत हासिल कर कांग्रेस को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था।

इस बार के लोकसभा चुनाव में जहां भाजपा बूथ स्तर पर अपनी मजबूत संगठनात्मक क्षमता को अपनी जीत का सूत्र मान रही है तो वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैलियां पार्टी को जीत हासिल करने में मदद कर सकती हैं। हालांकि कई सांसदों का टिकट काटे जाने से स्थानीय नेताओं में नाराजगी भाजपा के लिए जरूर मुसीबत बन सकती है। चुरू से सांसद और भाजपा नेता राहुल कस्वां टिकट काटे जाने के बाद हाल ही में कांग्रेस में शामिल हो गए और इस बार कांग्रेस की टिकट पर चुनाव मैदान में हैं।

क्या है बीजेपी का मजबूत पक्ष

हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में मिली शानदार जीत भी भाजपा के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है। इसके साथ ही प्रश्न पत्र लीक मामलों में बड़ी कार्रवाई से युवा मतदाता पार्टी की ओर आकर्षित हो सकते हैं। वहीं पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) को लेकर भाजपा का दावा है कि राज्य सरकार ने केंद्र और मध्य प्रदेश सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर इस दिशा में काम आगे बढ़ाया है।

पायलट-गहलोत से कांग्रेस को उम्मीद

कांग्रेस के लिए अशोक गहलोत जैसे दिग्गज नेता की राजनीतिक सूझबूझ संजीवनी का काम कर सकती है। पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की युवाओं और गुर्जर समुदाय के बीच लोकप्रियता भी कांग्रेस पार्टी की मजबूती मानी जा रही है। हालांकि यह भी तथ्य है कि पिछले कुछ सालों में गहलोत और पायलट के बीच ‘सत्ता संघर्ष’ ने पार्टी को कमजोर किया है। साथ ही राज्य में पार्टी का संगठनात्मक ढांचा और बूथ प्रबंधन, भाजपा की तुलना में कहीं कमजोर है।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस चुनाव में कांग्रेस गुर्जर समाज में असंतोष को भुनाने की कोशिश करेगी। समाज के एक वर्ग का मानना है कि राज्य की नयी भाजपा सरकार में उसे वह प्रतिनिधित्व नहीं मिला जिसके वह हकदार थे। इसके अलावा कांग्रेस क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन कर सकती है। पूर्व सांसद करण सिंह व पूर्व मंत्री महेंद्रजीत मालवीया सहित कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं ने हाल ही में भाजपा का दामन थामा है। देखना होगा कि कांग्रेस इसके असर से कैसे निपट पाती है।



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