Uttar Pradesh
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Who is Sanjay Seth? राज्यसभा चुनाव-2024 को लेकर यूपी की सियासत में अचानक हलचल तेज हो गई है। संख्या बल के हिसाब से बीजेपी के सात प्रत्याशियों ने बुधवार को नामांकन कर दिया था। अब पता चला है कि संजय सेठ आठवें उम्मीदवार के तौर पर गुरुवार को ही नामांकन कर सकते हैं। आठवां उम्मीदवार जिताने के लिए बीजेपी को कम से कम 14 अतिरिक्त वोटों की जरूरत होगी। ऐसे में संजय सेठ की उम्मीदवारी की खबरों ने तीन सीटों के लिए लड़ रही समाजवादी पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। संजय सेठ को लेकर चर्चा तेज हो गई है। माना जा रहा है कि बीजेपी ने सोच-समझकर संजय सेठ को मैदान में उतारा है। संजय सेठ 2019 में बीजेपी ज्वाइन करने से पहले सपा से ही राज्यसभा सांसद थे। वह सपा के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष रह चुके हैं।
10 अगस्त 2019 को सपा छोड़ भाजपा में शामिल हुए संजय सेठ को तब बीजेपी ने राज्यसभा में भेजा था। वर्तमान में वह भाजपा से ही राज्यसभा सांसद हैं। भाजपा से पहले सपा में रहने के चलते संजय सेठ की सपा में भी गहरी पैठ बताई जाती है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि संजय सेठ को आठवें उम्मीदवार के रूप में उतारने का निर्णय बीजेपी ने काफी सोच-समझकर लिया होगा। राज्यसभा चुनाव में सपा ने जो तीन उम्मीदवार उतारे हैं उनमें यूपी के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन, चार बार की राज्यसभा सदस्य जया बच्चन और पूर्व सांसद व दलित नेता रामजी लाल सुमन हैं। यूपी विधानसभा में संख्या बल के हिसाब से समाजवादी पार्टी को दो उम्मीदवार जिताने में कोई समस्या नहीं है लेकिन तीसरे उम्मीदवार के लिए उसे एक वोट की जरूरत पड़ती। अब यदि बीजेपी आठवां उम्मीदवार नहीं उतारती तो सपा की राह आसान हो सकती थी लेकिन आठवां उम्मीदवार उतारकर बीजेपी ने अपने लिए 14 अतिरिक्त वोटों की दरकार पैदा कर दी है। बीजेपी के अपने 252 विधायक हैं। घटक दलों को मिलाकर कुल 27 1 विधायक होते हैं। रालोद के नौ और राजा भैया की पार्टी के दो विधाायकों को जोड़ने के बाद भी बीजेपी को आठ उम्मीदवार जिताने के लिए 14 अतिरिक्त वोटों की जरूरत पड़ेगी।
यूपी की सियासत के साथ कारोबारी जगत में भी बड़ा मुकाम रखने वाले संजय सेठ की उम्मीदवारी ने सपा के लिए नई चुनौती खड़ी कर दी है। बताया जा रहा है कि संजय सेठ की सपा में भी अच्छी-खासी पैठ है। ऐसे में वह एक मजबूत प्रत्याशी होंगे। अपने 108 और कांग्रेस के 2 सदस्यों के बूते राज्यसभा चुनाव में तीन उम्मीदवार उतार चुकी सपा तीसरे उम्मीदवार की जीत के लिए एक वोट की जुगत में थी। अब उसके सामने एक अतिरिक्त वोट की जरूरत पूरी करने के साथ ही पार्टी में चल रही कलह के बीच अपने वोटों को सहेजे रखने की चुनौती भी है।