Uttar Pradesh
When Jawahar Lal Nehru reprimanded UP CM GB Pant through telegram story of finding Ramlala statue in Ayodhya Janmbhoomi case – India Hindi News – जब नेहरू ने तार भेज UP CM को लगाई थी फटकार, जानें

15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था। अभी देश का संविधान बन ही रहा था कि इसी बीच अयोध्या में राम जन्मभूमि का विवाद फिर से बढ़ने लगा था। ब्रिटिश हुकूमत इस मामले में कोई ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाई थी। 1949 तक आते-आते इस मुद्दे ने तेज रफ्तार पकड़ ली और सियासी रास्ते पर चल पड़ा।
आजादी के अगले साल यानी 1948 में उत्तर प्रदेश के 13 विधान सभा सीटों पर उप चुनाव होने थे। उस वक्त केंद्र और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। दरअसल, कांग्रेस के अंदर समाजवादी खेमा टूट चुका था। 1934 में बनी कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ने अब अलग रास्ता तय कर लिया था। राम मनोहर लोहिया और आचार्य नरेंद्र देव उस सोशलिस्ट पार्टी में शामिल थे। जब कांग्रेस के दोनों धड़ों के बीच तनाव बढ़ा तो सोशलिस्ट गुट के 13 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया।
फैजाबाद से विधायक आचार्य नरेंद्र देव भी उनमें शामिल थे। जब इस सीट पर उप चुनाव हुए तो सोशलिस्ट पार्टी ने फिर से आचार्य नरेंद्र देव को उम्मीदवार बनाया, जबकि कांग्रेस ने बाबा राघवदास को उनके सामने खड़ा कर दिया। बाबा राघव दास संत समाज के बड़े नेता थे। कहा जाता है कि कांग्रेस ने पहली बार राजनीति में राम नाम का सहारा लिया था। उस चुनाव में बाबा राघवदास ने ऐलान किया था कि वह राम जन्मभूमि को विरोधियों से मुक्त कराएंगे। उनकी बातों का वोटरों पर असर हुआ और वह उप चुनाव जीत गए। यानी चुनावों में राम नाम का जादू चल गया। बाबा राघवदास 1312 वोटों से जीत गए।
बाबा राघवदास के उप चुनाव जीतते ही अयोध्या में हिन्दू समाज के हौसले बुलंद हो गए। अब राम जन्मभूमि का मामला राजनीतिक बन चुका था, जबकि इससे पहले वह कानूनी मुद्दा था जो अदालतों में लड़ी जा रही थी। बाबा राघवदास ने 1949 में यूपी सरकार को पत्र लिखकर वहां मंदिर निर्माण का इजाजत मांगी। यूपी सरकार के उप सचिव केहर सिंह ने 20 जुलाई 1949 को फैजाबाद के डिप्टी कमिश्नर को पत्र लिखकर पूछा कि विवादित जमीन नजूल की है या नगरपालिका की।
अक्टूबर में सिटी मजिस्ट्रेट ने डीसी को रिपोर्ट दी कि मौके पर मस्जिद के बगल में एक छोटा सा मंदिर है। इसे हिन्दू राम का जन्मस्थान मानकर वहां बड़ा राम मंदिर बनाना चाहते हैं। सिटी मजिस्ट्रेट ने सिफारिश की कि यह जमीन नजूल की है और मंदिर निर्माण की इजाजत दी जा सकती है।
इससे पहले, वक्फ इंस्पेक्टर ने 10 दिसंबर 1948 को एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि हिन्दू समाज के संत कब्रों-मजारों को साफ करके रामायण पाठ कर रहे हैं और बाबरी ढांचे पर कब्जा करना चाहते हैं। बाबा राघव दास की पहल पर 24 नवंबर 1949 को हिन्दू संतों ने बाबरी मस्जिद के पास कब्रिस्तान को साफ कर वहां रामायण का पाठ शुरू कर दिया। इससे वहां भीड़ बढ़ने लगी। झगड़ा बढ़ता देख पुलिस बुलाई गई। फिर प्रशासन ने वहां पुलिस चौकी बना दी और पीएसी तैनात कर दी।
इस घटना के 28 दिन बाद 22-23 दिसंबर, 1949 की दरम्यानी रात को रामजन्मभूमि विवाद ने नया रूप ले लिया। उस रात कुछ लोगों ने दीवार फांदकर मस्जिद में राम-जानकी और लक्षमण की मूर्तियां रख दीं। इस घटना को हिन्दू संगठनों ने यह कहकर दावा किया कि भगवान राम खुद प्रकट होकर संदेश दे रहे हैं कि यही उनका जन्मस्थान है और वह इस पर वापस कब्जा चाहते हैं। मुस्लिम समुदाय ने इसका विरोध किया और अभिराम दास समेत 50-60 अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज करवा दिया।
मस्जिद में रहस्यमय तरीके से मूर्ति मिलने की खबर देशभर में आग की तरह फैल गई। दिल्ली तक इसकी आंच दिखी। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस घटना के तीन दिन बाद यानी 26 दिसंबर, 1949 को, पंडित नेहरू ने तत्कालीन मुख्यमंत्री जीबी पंत को एक टेलीग्राम भेजा, जिसमें उन्होंने कहा था, “अयोध्या की घटना से मैं बहुत विचलित हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि आप इस मामले में व्यक्तिगत रुचि लेंगे। खतरनाक मिसाल कायम की जा रही है, जिसके परिणाम बुरे होंगे।”
इसके बाद राज्य के मुख्य सचिव ने फैजाबाद कमिश्नर को लखनऊ तलब कर डांट लगाई थी कि इस घटना को क्यों नहीं रोका गया और सुबह फिर से मूर्तियाँ क्यों नहीं हटवाईं? 29 दिसंबर को फैजाबाद कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 145 के तहत कुर्की का आदेश दिया और बाबरी परिसर में ताला लगाने का आदेश दिया। हालांकि, कोर्ट ने रामलला की मूर्ति की पूजा और देखभाल के लिए प्रियदत्त राम को रिसीवर नियुक्त कर दिया।
गोविंद वल्लभ पंत ने प्रधानमंत्री के संदेश पर एक्शन लेते हुए फैजाबाद डीएम को मूर्ति हटाने कानिर्देश दिया था लेकिन तत्कालीन डीएम केके नायर ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था और तर्क दिया था कि मूर्ति हटाई तो ऱून-खराबा होगा। एक्शन ना होता देख पंडित नेहरू ने गृह मंत्री सरदार पटेल को मामले को देखने को कहा था। तब पटेल ने भी सीएम को चिट्ठी लिखी। पंत ने फिर से डीएम पर दबाव बनाया तब डीएम नायर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।