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दिल्ली HC ने खारिज कर दी 60 साल पुरानी मंदिर को लेकर दायर याचिका, कहा- हस्तक्षेप की जरूरत नहीं

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दिल्ली HC ने खारिज कर दी 60 साल पुरानी मंदिर को लेकर दायर याचिका, कहा- हस्तक्षेप की जरूरत नहीं


दिल्ली हाई कोर्ट ने 60 साल पुरानी मंदिर को लेकर ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दी। हाई कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास भूमि पर कोई अधिकार या स्वामित्व नहीं था। इसलिए सार्वजनिक भूमि से अतिक्रमण हटाने के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने 60 साल पुरानी मंदिर को लेकर ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दी। हाई कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास भूमि पर कोई अधिकार या स्वामित्व नहीं था। इसलिए सार्वजनिक भूमि से अतिक्रमण हटाने के ट्रायल कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने डीडीए के स्वामित्व वाले एक सार्वजनिक पार्क पर कथित तौर पर अवैध रूप से बनाई गई धार्मिक संरचना को तोड़ने के आदेश के खिलाफ एक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट अवनीश कुमार द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को कोंडली सब्जी मंडी के शिव पार्क में 60 साल पुराने मंदिर को हटाने से रोकने की मांग की गई थी।

4 अक्टूबर के एक आदेश में जस्टिस तारा वी गंजू ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास भूमि पर कोई अधिकार या स्वामित्व नहीं था। इसलिए सार्वजनिक भूमि से “गैरकानूनी अतिक्रमण” हटाने के डीडीए के फैसले में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है। शिव मंदिर डीडीए के स्वामित्व वाले एक सार्वजनिक पार्क में है। रिकॉर्ड दर्शाता है कि अपीलकर्ता ने पार्क के 200 वर्ग मीटर पर अनधिकृत रूप से कब्जा कर लिया गया है। मुकदमे वाली जमीन पर स्वामित्व या विशेष कब्जे का दावा करने के लिए चारदीवारी का निर्माण किया गया है।

फैसले में कहा गया कि निषेधाज्ञा के मुकदमे की आड़ में अपीलकर्ता पिछले कई वर्षों से एक सार्वजनिक पार्क पर अनधिकृत निर्माण के विध्वंस को रोकने में सफल रहा था। इसमें कहा गया कि कोर्ट द्वारा इसका समर्थन नहीं किया जा सकता।

अपीलकर्ता ने दावा किया था कि वह मंदिर में एक भक्त और उपासक हौ और संरचना को ध्वस्त करना उसके “पूजा करने के अधिकार” का उल्लंघन होगा। उन्होंने दावा किया था कि मंदिर का निर्माण 1969 में इलाके के जमींदारों द्वारा भूमि दान के बाद किया गया था। अपील को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि हालांकि “पूजा करने का अधिकार” निस्संदेह एक नागरिक अधिकार है जो मुकदमे का विषय हो सकता है। लेकिन, मौजूदा मामले में अपीलकर्ता का यह दावा नहीं कर सकता कि किसी भी वैध मंदिर में उसे पूजा करने से रोका जा रहा है।

कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता द्वारा जो करने की मांग की जा रही है वह एक अचल संपत्ति/मंदिर में एक गैर-मौजूदा अधिकार को लागू करना है, जिसका निर्माण अवैध रूप से किया गया है। साथ ही एक बाउंड्री भी है, जो उस मंदिर के चारों ओर बनाई गई है। इस प्रकार, सिविल अपीलकर्ता के पूजा करने के अधिकार पर किसी भी व्यक्ति या प्राधिकारी द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जा रहा है।

डीडीए ने याचिका का विरोध किया और तर्क दिया कि अपीलकर्ता के पास न तो भूमि पर कोई अधिकार, स्वामित्व या हित है और न ही वह मंदिर में पुजारी था। डीडीए ने जून में एक पत्र जारी कर संबंधित भूमि से अनधिकृत अतिक्रमण हटाने के लिए पुलिस सहायता मांगी थी।



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