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उत्तराखंड में ‘मिशन आपातकाल’ को कानूनी कवच

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उत्तराखंड में ‘मिशन आपातकाल’ को कानूनी कवच


सीएम धामी की अगुवाई में ‘मिशन आपातकाल’ की तैयारी, उत्तराखंड की राजनीति में हलचल तेज़ 

देहरादून(उत्तराखंड): उत्तराखंड की राजनीति में एक बार फिर हलचल मचने वाली है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अगुवाई में सरकार अब ‘मिशन आपातकाल’ की तैयारी कर रही है। इसके तहत विधानसभा के आगामी गैरसैंण सत्र में एक ऐसा विधेयक लाया जाएगा जो आपातकाल के दौरान जेल जाने वालों को कानूनी रूप से लोकतंत्र सेनानी घोषित करेगा और उन्हें न सिर्फ पेंशन बल्कि अन्य सरकारी सुविधाएं भी देने का रास्ता खोलेगा।

यह विधेयक उस शासनादेश को वैधानिक दर्जा देगा जो पूर्ववर्ती त्रिवेंद्र रावत सरकार के समय लागू किया गया था। वर्तमान में राज्य के 82 लोग ऐसे हैं जिन्हें आपातकाल में कम से कम एक माह जेल में रहने के आधार पर ₹20,000 प्रति माह की पेंशन दी जा रही है। अब धामी सरकार इस व्यवस्था को स्थायी और संवैधानिक स्वरूप देना चाहती है। गृह विभाग इस विधेयक का ड्राफ्ट तैयार करने में जुटा है।

खबर है कि प्रस्तावित कानून में स्वास्थ्य और परिवहन जैसी अन्य सहूलियतें भी लोकतंत्र सेनानियों को दिए जाने की बात शामिल हो सकती है, यदि वित्त विभाग की मंजूरी मिलती है। यह पहल राज्य स्तर पर भले हो, लेकिन इसके दूरगामी राजनीतिक निहितार्थ हैं—क्योंकि भाजपा लंबे समय से आपातकाल को कांग्रेस की तानाशाही का प्रतीक बताकर इसे राष्ट्रीय बहस का विषय बनाती रही है।

हालांकि, कांग्रेस ने सरकार की इस पहल को ‘राजनीतिक नौटंकी’ बताया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता सूर्यकांत धस्माना ने कहा, “भाजपा की यह योजना केवल जनहित से ध्यान भटकाने के लिए है। आपातकाल के बावजूद जनता ने इंदिरा गांधी को फिर सत्ता सौंपी थी। भाजपा खुद अंग्रेजों की नीतियों पर चली, उसे आज़ादी की लड़ाई और लोकतंत्र का उपदेश देने का कोई अधिकार नहीं।”

दूसरी ओर, भाजपा विधायक खजान दास ने कहा कि इस विधेयक के माध्यम से उन लोगों को सम्मान मिलेगा, जो तानाशाही के खिलाफ लड़े। उन्होंने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा कि आपातकाल के दौरान कई कांग्रेस नेता भी इस फैसले के विरोध में थे, इसलिए कांग्रेस का विरोध बेमानी है।

धामी सरकार का यह कदम उसके पूर्व अभियान ‘मिशन कालनेमि’ के बाद सामने आ रहा है। ‘मिशन कालनेमि’ के तहत ढोंगी बाबाओं और पाखंडियों के खिलाफ सख्त अभियान चलाया गया था। अब ‘मिशन आपातकाल’ के जरिए सरकार अपनी वैचारिक नीतियों और राजनीतिक रणनीति को धार देने की तैयारी में है।

यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मुद्दा आगामी सत्र में कितनी गर्मी पैदा करता है और क्या यह भाजपा के लिए एक नया राजनीतिक मोर्चा साबित होगा या कांग्रेस के लिए विरोध का एक और अवसर।

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