Uttarakhand
Whose land actually belongs to Madrasa which burnt down Haldwani after demolishing
Haldwani News Update Hindi: हल्द्वानी में सरकारी भूमि पर बने अवैध मदरसे और इबादत स्थल के खिलाफ चलाए गए अतिक्रमण हटाओ अभियान के दौरान हिंसक रूप ले लिया। 08 फरवररी को दोपहर बाद हल्द्वानी हिंसा में पेट्रोल बम, ईंट-पत्थर, कांच की बोतलों से लेकर देसी तमंचे के इस्तेमाल से 16 साल के लड़के के समेत पांच लोगों की दर्दनाक मौत हो गई।
शहर में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिला प्रशासन ने कर्फ्यू लगा दिया। हल्द्वानी के वनभुलपुरा पर जिस जगह मदरसे, और मस्जिद बनाई गई है, उस जमीन पर सालों से विवाद चल रहा है। वनभूलपुरा क्षेत्र में रहने वाले लोगों का कहना है था कि तत्कालीन कॉलोनियल सरकार ने मोहम्मद यासीन को 7 जनवरी 1937 को यह जमीन कृषि के लिए लीज पर दी थी।
चूंकि वनभूलपुरा एक मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है इस जमीन पर 2002 में एक मस्जिद, और मदरसे का निर्माण किया गया था। अब्दुल मलिक और सफिया मलिक इस संपत्ति की देखरेख कर रहे थे और 4 फरवरी को हल्द्वानी नगर निगम की ओर से इस संपत्ति के सील कर दिया गया था।
सफिया मलिक के वकील ने नगर निगम द्वारा 30 जनवरी को धवस्तीकरण संबंधित नोटिस के खिलाफ 6 फरवरी को उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। कहा जिस दो निर्माण के खिलाफ धवस्तीरकण का नोटिस जारी किया है, यह दोनों 1994 में सफिया के परिवार को बेच दिया गया था।
बताया कि मोहम्मद यासीन को पट्टे पर दी गई जमीन को 10 साल के लिए लीज पर दिया गया, जिसका नवीनीकरण होता रहा। इसके बाद, मोहम्मद यासीन ने प्लॉट अख्तरी बेगम और नबी रजा खान को बेच दिया। मलिक के वकील अहरार बेग का कहना है कि अख्तरी बेगम ने इसे मलिक के पिता अब्दुल हनीफ खान को 1994 में मौखिक उपहार (हिबा) के रूप में दे दिया गया था।
उन्होंने कहा कि 2006 में, मेरे याचिकाकर्ता के पिता अब्दुल हनीफ खान ने उन्हें फ्रीहोल्ड अधिकार देने के लिए नैनीताल जिला प्रशासन से संपर्क किया था। लेकिन उन्हें जिला प्रशासन से कोई जवाब नहीं मिला। उन्होंने 2007 में उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की।
अधिकारियों को फ्रीहोल्ड अधिकार देने के लिए अदालत से निर्देश की मांग की गई। 18 अगस्त, 2007 को, उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक समाधान के लिए नैनीताल कलेक्टर को निर्देश जारी किए थे। उस आदेश के बावजूद, फ्रीहोल्ड अधिकारों पर कार्रवाई नहीं की जा सकी।
फ्रीहोल्ड अधिकार वास्तविक संपत्ति के स्वामित्व को संदर्भित करता है, जहां मालिक के पास संपत्ति पर अनिश्चित, अप्रतिबंधित और पूर्ण अधिकार होते हैं। फ्रीहोल्ड व्यवस्था में, संपत्ति के मालिक को स्थानीय कानूनों और विनियमों की सीमाओं के भीतर, संपत्ति का उपयोग करने, बेचने, पट्टे पर देने या स्थानांतरित करने का अधिकार है, जैसा वे उचित समझते हैं।
उन्होंने कहा कि पट्टा 2006 में या उससे पहले समाप्त हो गया था। वकील का कहना था कि पट्टे की समाप्ति के बाद उन्होंने कानूनों के अनुसार फ्रीहोल्ड अधिकारों के लिए आवेदन किया था। मलिक के वकील का कहना है कि 2013 में उनके पिता अब्दुल हनीफ खान के निधन के बाद संपत्ति सफिया मलिक को हस्तांतरित कर दी गई थी।
सफिया मलिक के पति अब्दुल मलिक को स्वामित्व के प्रमाण को लेकर 2020 में एक नोटिस दिया गया था। हमारी ओर से जवाब पर विचार किए बिना हीत मदरसे का एक हिस्सा जिसमें कक्षाएं चलती थीं, उसे ध्वस्त कर दिया गया।
यह मदरसा सफिया मलिक और उनके पति द्वारा गरीब बच्चों के लिए धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए चलाया जा रहा था। हालांकि, उनकी बात सुने बिना, नगर निगम ने 27 जनवरी को संपत्ति पर जबरन कब्ज़ा करने की कोशिश की। तीन दिन बाद, 30 जनवरी को, उन्होंने (नगर निगम ) धवस्तीरकण का नोटिस दिया।
31 जनवरी को, अब्दुल मलिक ने 2007 में उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में फ्रीहोल्ड अधिकार पारित करने और हल्द्वानी नागरिक निकाय को भूमि में हस्तक्षेप न करने का निर्देश देने के लिए डीएम से संपर्क किया।
हमने 6 फरवरी को हलद्वानी नगर निकाय के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने 8 फरवरी को मामले की सुनवाई की और अगली सुनवाई 14 फरवरी को तय की थी।
आरोप था कि धवस्तीकरण की कार्रवाई जल्दबाजी में और मनमाने ढंग से कानूनों के खिलाफ की गई।
अदालत ने अभी तक अपना अंतिम आदेश नहीं दिया है। एचटी ने सफिया मलिक से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन वह टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थीं। दूसरी ओर, हल्द्वानी नगर निगम ने कहा कि उन्होंने कानूनों के अनुसार कार्रवाई की है और धवस्तीकरण पर उच्च न्यायालय द्वारा कोई रोक नहीं लगाई गई थी।
हल्द्वानी के नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय का कहना था कि उच्च न्यायालय से धवस्तीकरण पर रोक के लिए कोई अंतरिम आदेश नहीं था और अवैध निर्माणों के धवस्तीकरण की कार्रवाई पहले से चल रही थी।
“हमने सरकारी आदेश के अनुसार काम किया, जो सरकार से अतिक्रमण हटाने के लिए 2009 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देता है और अधिकारियों की जवाबदेही तय करता है।
यदि अतिक्रमण के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, तो संबंधित अधिकारी के खिलाफ जवाबदेही तय होती है,” उपाध्याय, और कहते हैं कि यह निर्माण नजूल भूमि पर अवैध रूप से बनया गया है। हमने सबसे पहले 30 जनवरी को अब्दुल मलिक को मस्जिद और मदरसे को गिराने का नोटिस दिया था।
हमने धवस्तीरकण की तारीख 1 फरवरी तय की थी और फिर हमने इसे 4 फरवरी तक के लिए टाल दिया, फिर 8 फरवरी को धवस्तीकरण की तारीख तय हुई थी और तबतक मालिकाना हक साबित नहीं कर पाए। उपाध्याय का कहना था कि अगर उन्हें लगता है कि वे अपनी ओर से सही हैं, तो वे हमसे मुआवजा मांगने के लिए अदालत में इसे साबित कर सकते हैं।