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UP Ayodhya Ram Temple Consecration Inauguration Opening Ceremony People eager to reach anyhow

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अयोध्या राम मंदिर आंदोलन के दौरान 31 अक्टूबर और 2 नवंबर 1990 में अयोध्या ही नही प्रदेश भर की सीमाएं सील थी। इसके बावजूद कारसेवकों का जनसैलाब रामनगरी में उमड़ पड़ा था। कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक से लोग गांव की पगडंडियों से चलकर गंतव्य तक पंहुच गए थे। तब आंदोलन में और अब प्राणप्रतिष्ठा के दिन पंहुचने की आतुरता है। भीड़ अथाह न हो जाए इस बात को लेकर केंद्र से लेकर प्रदेश तक के अधिकारियों के माथे पर चिंता की लकीरें है। यही कारण है नगर की सीमाओं पर प्रशासनिक व्यवस्थाएं भीड़ रोकने के लिए की जा रही हैं।

तत्कालीन सपा सरकार ने कहा था कि अयोध्या में परिंदा भी पर नही मार पाएगा इस तरह की सुरक्षा व्यवस्था की गई है। इसके बावजूद लाखों कारसेवक पंहुच गए थे। जितना भी बन पड़ा स्थानीय लोगों ने भोजन कराया और रहने का स्थान दिया। 2 नवम्बर 1990 को सूरज निकलते ही जनसमुद्र सड़कों पर था। विश्व हिंदू परिषद ने अपने आंदोलन में पाबंदियों के बाद भी भीड़ पंहुच जाने से सीख लेकर शासन स्तर के अधिकारियों को चेताया है।

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बलिदान और योगदान की बदौलत राम मंदिर बना

शहर के रामनगर क्षेत्र के रहने वाले कुशल बत्रा कहते हैं कि राममंदिर के लिए जिन्होंने बलिदान दिया और हमारे पूर्वजों ने राममंदिर के लिए जो योगदान दिया है यह श्रेय उन्हीं को जाता है, कि आज राममंदिर बन गया और 22 जनवरी को रामलला का वहां प्राण प्रतिष्ठा होने जा रहा है। हम सभी लोग बहुत खुश हैं कि भगवान अपने जन्मस्थान में 500 साल की तपस्या और बलिदान के बाद वापस आ रहे हैं। अयोध्या का विकास तेजी से हो रहा है। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बधाई के पात्र हैं।



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