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aap mp raghav chadha says supreme court order worth reading by delhi lg and punjab gov

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आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि राज्यपाल किसी भी कार्रवाई के बिना विधेयकों को अनिश्चित काल तक लंबित नहीं रख सकते है। राघव चड्ढा (AAP MP Raghav Chadha) ने शुक्रवार को कहा कि पंजाब राज्यपाल और दिल्ली के उपराज्यपाल को शीर्ष अदालत का आदेश पढ़ने की जरूरत है। इस आदेश से यह स्पष्ट हो गया है कि राज्यपाल और उपराज्यपाल अपनी शक्तियों का ‘दुरुपयोग’ नहीं कर सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित (Punjab Governor Banwarilal Purohit) को 19 और 20 जून को आयोजित विधानसभा सत्र के दौरान पारित विधेयकों पर निर्णय लेने का निर्देश दिया है। सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा है कि राज्यपाल की शक्ति का उपयोग कानून बनाने की प्रक्रिया को विफल करने के लिए नहीं किया जा सकता है। 

मालूम हो कि पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित का मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के साथ विवाद चल रहा है। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार की याचिका पर शीर्ष अदालत ने 10 नवंबर को फैसला दिया। यह फैसला गुरुवार रात को वेबसाइट पर लोड किया गया। याचिका में आरोप लगाया गया था कि राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित चार विधेयकों पर अपनी सहमति नहीं दे रहे हैं।

राघव चड्ढा (Raghav Chadha) ने एक्स पर अपनी पोस्ट में कहा- माननीय सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार द्वारा पंजाब के राज्यपाल के खिलाफ दायर एक याचिका पर फैसला दिया है। फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि राज्यपाल राज्य विधानसभाओं की कार्यवाही में बाधा डालने के लिए अपनी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं कर सकते हैं। पंजाब के राज्यपाल और दिल्ली के एलजी को उक्त फैसले को समझने के लिए जितनी बार जरूरत हो उसे पढ़ना चाहिए। इसके लिए राज्यपाल और एलजी को किसी विद्वान वरिष्ठ वकील की सहायता भी लेनी चाहिए। 

वहीं समाचार एजेंसी पीटीआई भाषा की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल बिना कार्रवाई के अनिश्चितकाल के लिए विधेयकों को लंबित नहीं रख सकते हैं। राज्यपाल राज्य के गैर निर्वाचित प्रमुख के तौर पर संवैधानिक शक्तियों से संपन्न होते हैं लेकिन उनका इस्तेमाल वह राज्य विधानमंडलों की ओर से कानून बनाने की सामान्य प्रक्रिया को विफल करने के लिए नहीं कर सकते हैं। ऐसी कार्रवाई लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ होगी जो शासन के संसदीय स्वरूप पर आधारित है।



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