Uttar Pradesh
पिछले साल पूर्वांचल में पाकिस्तान और चीन से आए वायरस ने बरपाया था कहर, रिसर्च से खुलासा

Coxsackie a-24 virus: पाकिस्तान और चीन से आए वायरस ने पिछले साल उत्तर प्रदेश से लेकर पूर्वोत्तर के राज्यों (देश के पूर्वांचल) तक हैमरेजिक कंजंक्टिवाइटिस (नेत्र शोथ) का कहर बरपाया था। रिसर्च में पता चला कि 75 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में संक्रमण की वजह कॉक्सकी ए-24 वायरस था। सिर्फ 24 मामलों में ही कंजंक्टिवाइटिस की वजह बैक्टीरिया और फंगल इन्फेक्शन पाया गया।
यह खुलासा हुआ है क्षेत्रीय चिकित्सा शोध संस्थान (आरएमआरसी) गोरखपुर की जीनोम सीक्वेंसिंग और जीन मैपिंग आधारित रिसर्च में। करीब आठ महीने तक चली रिसर्च की अगुवाई संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. गौरव राज द्विवेदी ने की। रिसर्च टीम ने कंजंक्टिवाइटिस के कारक वायरस की पहचान के साथ उसके प्रसार की निगरानी भी की।
महज 32 नमूनों में बैक्टीरियल व फंगल इन्फेक्शन रिसर्च में जिन 128 नमूनों की जीनोम सीक्वेंसिंग और जीन मैंपिंग कराई गई, उनमें से 96 में पाकिस्तान और चीन में पाया गया कॉक्सकी ए-24 वायरस मिला। सिर्फ 32 नमूने ही ऐसे रहे जिनमें बैक्टीरिया व फंगल इन्फेक्शन मिला। शोध करने वाली टीम के मुताबिक, आमतौर पर कंजंक्टिवाइटिस बैक्टीरियल, फंगल और वायरल इन्फेक्शन से होता हैं। इस रिसर्च को अंतरराष्ट्रीय जर्नल इंट्रो वायरोलॉजी ने स्वीकृति दे दी है। आगामी संस्करण में यह पेपर प्रकाशित होगा।
ये रहे रिसर्च में
पूर्व निदेशक डॉ मनोज मुरेरकर, वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राजीव सिंह, डॉ. एसपी बेहरा, डॉ. नलिनी मिश्रा, डॉ. ऐश्वर्य शुक्ला, डॉ. मोनी कुमारी, डॉ. सोनल राजपूत, डॉ. इम्बिश्ता फातिमा, डॉ. आशुतोष तिवारी, डॉ. प्रशांत श्रीवास्तव, डॉ. शशिकांत तिवारी
कॉक्सकी ए-24 वायरस
पिछले साल मानसून सीजन में गोरखपुर में हैमरेजिक कंजंक्टिवाइटिस के 600 से ज्यादा मरीज पाए गए थे। संक्रमण के कारणों की पहचान के लिए आरएमआरसी की शोध टीम ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल में आए 128 मरीजों की आंखों से स्मीयर्स के नमूने लिए। जीनोम सीक्वेंसिंग में संक्रमण का सबसे बड़ा कारण कॉक्सकी ए-24 वायरस पाया गया। इस वायरस की जीनोम सीक्वेंसिंग व जीन मैपिंग पाकिस्तान और चीन में मिले स्ट्रेन के साथ कराई गई तो 99.9 ़फीसदी समरूपता मिली।
क्या बोले आएआसी निदेशक
आरएमआरसी निदेशक डॉ.कृष्णा पाण्डेय ने कहा कि कंजंक्टिवाइटिस के कारक की पहचान में यह रिसर्च अहम है। सही वायरस की पहचान से इलाज में सहूलियत हो जाती है। इस पर आगे भी रिसर्च की जाएगी।