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भारत ने अपना सच्चा ‘रत्न’ खो दिया; रतन टाटा के निधन पर बोले अरविंंद केजरीवाल

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भारत ने अपना सच्चा ‘रत्न’ खो दिया; रतन टाटा के निधन पर बोले अरविंंद केजरीवाल


देश और दुनिया के दिग्गज उद्योगपतियों में शुमार रतन टाटा का 86 साल की उम्र में बुधवार देर रात मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन हो गया। रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर, 1937 को मुंबई में हुआ था।

देश और दुनिया के दिग्गज उद्योगपतियों में शुमार रतन टाटा का 86 साल की उम्र में बुधवार देर रात मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन हो गया। रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर, 1937 को मुंबई में हुआ था। वह 1991 से 2012 में अपनी रिटायरमेंट तक टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी टाटा संस के अध्यक्ष थे। उन्हें 2008 में देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। उनके निधन से उद्योग जगत से लेकर राजनीतिक जगत तक सभी जगह शोक की लहर है।

आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी रतन टाटा के निधन पर शोक व्यक्त किया है। केजरीवाल ने अपने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा, ”भारत ने अपना सच्चा ‘रत्न’ खो दिया है, जिसने असंभव को संभव बना दिया। रतन टाटा की विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।”

दिल्ली की सीएम आतिशी ने उद्योगपति रतन टाटा के परिवार के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की है। आतिशी ने कहा ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में, , “रतन टाटा जी के निधन के बारे में सुनकर मुझे गहरा दुख हुआ है। उन्होंने ऐथिकल लीडरशिप का उदाहरण पेश किया, हमेशा देश और उसके लोगों के कल्याण को सबसे ऊपर रखा। उनकी दयालुता, विनम्रता और बदलाव लाने के जुनून को हमेशा याद रखा जाएगा।”

उन्होंने कहा, “उनके परिवार और प्रियजनों के प्रति मेरी हार्दिक संवेदना। उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।”

सादगी और ईमानदारी से रतन टाटा ने बनाई अलग पहचान

भाषा के अनुसार, 86 साल के रतन टाटा भले ही दुनिया के सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में से एक थे, फिर भी वह कभी अरबपतियों की किसी सूची में नजर नहीं आए। उनके पास 30 से ज्यादा कंपनियां थीं, जो छह महाद्वीपों के 100 से अधिक देशों में फैली थीं, इसके बावजूद वह एक सादगीपूर्ण जीवन जीते थे। सरल व्यक्तितत्व के धनी टाटा एक कॉरपोरेट दिग्गज थे, जिन्होंने अपनी शालीनता और ईमानदारी के बूते एक अलग तरह की छवि बनाई थी।

रतन टाटा 1962 में कॉर्नेल विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क से वास्तुकला में बी.एस. की डिग्री प्राप्त करने के बाद पारिवारिक कंपनी में शामिल हो गए। उन्होंने शुरुआत में एक कंपनी में काम किया और टाटा ग्रुप के कई व्यवसायों में अनुभव प्राप्त किया, जिसके बाद 1971 में उन्हें (समूह की एक फर्म) ‘नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी’ का प्रभारी निदेशक नियुक्त किया गया।

एक दशक बाद वह टाटा इंडस्ट्रीज के चेयरमैन बने और 1991 में अपने चाचा जेआरडी टाटा से टाटा ग्रुप के चेयरमैन का पदभार संभाला। जेआरडी टाटा पांच दशक से भी अधिक समय से इस पद पर थे।

यह वह वर्ष था जब भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को खोला और 1868 में कपड़ा और व्यापारिक छोटी फर्म के रूप में शुरुआत करने वाले टाटा समूह ने शीघ्र ही खुद को एक ‘‘वैश्विक महाशक्ति’’ में बदल दिया, जिसका परिचालन नमक से लेकर इस्पात, कार से लेकर सॉफ्टवेयर, बिजली संयंत्र और एयरलाइन तक फैला गया था।

रतन टाटा दो दशक से अधिक समय तक समूह की मुख्य होल्डिंग कंपनी ‘टाटा संस’ के चेयरमैन रहे और इस दौरान समूह ने तेजी से विस्तार करते हुए वर्ष 2000 में लंदन स्थित टेटली टी को 43.13 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीदा, वर्ष 2004 में दक्षिण कोरिया की देवू मोटर्स के ट्रक-निर्माण परिचालन को 10.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीदा, एंग्लो-डच स्टील निर्माता कोरस समूह को 11 अरब अमेरिकी डॉलर में खरीदा और फोर्ड मोटर कंपनी से मशहूर ब्रिटिश कार ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर को 2.3 अरब अमेरिकी डॉलर में खरीदा।

भारत के सबसे सफल व्यवसायियों में से एक होने के साथ-साथ, वह अपनी परोपकारी गतिविधियों के लिए भी जाने जाते थे।

परोपकार में उनकी व्यक्तिगत भागीदारी बहुत पहले ही शुरू हो गई थी। वर्ष 1970 के दशक में, उन्होंने आगा खान अस्पताल और मेडिकल कॉलेज परियोजना की शुरुआत की, जिसने भारत के प्रमुख स्वास्थ्य सेवा संस्थानों में से एक की नींव रखी।



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