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पहली बार AI से पैदा हुआ दुर्लभ गोडावण, कृत्रिम गर्भाधान से चूजे को दिया जन्म

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वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के लगातार किए जा रहे प्रयासों में यह बड़ी उपलब्धि है। दूसरी जेनरेशन के गोडावण की आर्टिफिशियल हैचिंग से बहुत बड़ी सफलता मिली है। अब लुप्त हो रही सोनचिरैया को कृत्रिम तरीके से पैदा किया जा सकेगा। इस प्रकार का देश का यह पहला मामला है।

Prem Narayan Meena लाइव हिन्दुस्तानWed, 23 Oct 2024 02:12 AM
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राजस्थान के जैसलमेर के राष्ट्रीय मरू उद्यान में विलुप्त हो रही सोन चिरैया का कुनबा बढ़ने की प्रबल संभावना बढ़ गई है। यहां सुदासरी स्थित ब्रीडिंग सेंटर में आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन (कृत्रिम गर्भाधान) के जरिए गोडावण का चूजा पैदा करवाने में वैज्ञानिकों को सफलता मिली है। माना जा रहा है कि ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश है और यह दुर्लभ गोडावण के संरक्षण के क्षेत्र में बड़ी छलांग है। राष्ट्रीय मरू उद्यान के डीएफओ आशीष व्यास ने बताया कि जैसलमेर में पिछले चार दशक से गोडावण संरक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन पहली बार गोडावण ने कृत्रिम गर्भाधान के जरिए चूजे को जन्म दिया है।

डिप्टी सीएम दीया कुमारी ने एक्स पर लिखा- राजस्थान के जैसलमेर में गोडावण संरक्षण के प्रयासों में एक बड़ी सफलता मिली है। राज्य पक्षी, गोडावण (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड), जो विलुप्ति की कगार पर है, उसके संरक्षण के लिए कृत्रिम गर्भाधान (आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन) तकनीक का सफल प्रयोग किया गया। इस तकनीक के माध्यम से एक स्वस्थ चूजे का जन्म हुआ, जो गोडावण की घटती संख्या को बढ़ाने और इसे विलुप्ति से बचाने की दिशा में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।

यह महत्वपूर्ण सफलता “बस्टर्ड संरक्षण एवं पुनर्वास कार्यक्रम” के अंतर्गत जैसलमेर स्थित कृत्रिम प्रजनन केंद्र में की गई। इस उल्लेखनीय सफलता के लिए समर्पित वैज्ञानिकों, वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को ऐतिहासिक उपलब्धि पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देती हूँ।

पहले गोडावण के अंडों को फील्ड से उठाकर सुदासरी के गोडावण ब्रीडिंग सेंटर में रखा जाता था। यहां कृत्रिम रूप से अंडों से चूजे बाहर निकाले जाते थे, लेकिन इस बार नर गोडावण के स्पर्म को मादा गोडावण में इंजेक्ट किया गया। इसके बाद मादा गोडावण ने अंडा दिया। उस अंडे ने अब एक सुरक्षित चूजे को जन्म दिया है। व्यास ने बताया कि वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के लगातार किए जा रहे प्रयासों में यह बड़ी उपलब्धि है। दूसरी जेनरेशन के गोडावण की आर्टिफिशियल हैचिंग से बहुत बड़ी सफलता मिली है। अब लुप्त हो रही सोनचिरैया को कृत्रिम तरीके से पैदा किया जा सकेगा। इस प्रकार का देश का यह पहला मामला है।

जानकारी के अनुसार गोडावण के कृत्रिम गर्भाधान का यह अनोखा विचार अबूधाबी से आया। वहां इंटरनेशनल फंड फॉर हुबारा कंजर्वेशन फाउंडेशन में तिलोर पक्षी पर इस तरह का सफल परीक्षण किया गया। जिसके बाद भारत से वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के वैज्ञानिक गत वर्ष वहां गए और इस तकनीक का प्रशिक्षण प्राप्त किया। इसके बाद गोडावण में कृत्रिम गर्भाधान के लिए प्रयास शुरू किए गए।

इस पद्धति में नर गोडावण के सामने एक कृत्रिम मादा रखी जाती है और उसे मेटिंग के लिए प्रशिक्षित किया जाता है जिससे वह स्पर्म दे सके। नर गोडावण को इस तरह का प्रशिक्षण देने में 8 माह का समय लगा। गौरतलब है कि जैसलमेर का डेजर्ट नेशनल पार्क गोडावण संरक्षण की दशकों पुरानी कवायद का हिस्सा है। यहां पर गोडावण के रहने व उनके प्रजनन की अनुकूल परिस्थितियां है। इसके अलावा जिले में दो ब्रीडिंग सेंटर रामदेवरा व सुदासरी में बनाए गए।



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