Uttarakhand
56 साल बाद मिला जवान का शव, पत्नी ने आखिरी सांस तक किया इंतजार; आज भी गूंजती है कहानी
2011 में उनके निधन के तेरह साल बाद बसंती देवी की अटूट आशा की कहानी आज भी गूंजती रहती है। अपनी आखिरी सांस तक उन्होंने अपने पति नारायण सिंह की वापसी का इंतजार किया। उन्हें 1968 में हिमाचल प्रदेश के बर्फ से भरे पहाड़ों में वायु सेना के विमान की दुर्घटना के बाद लापता घोषित कर दिया गया था।
2011 में उनके निधन के तेरह साल बाद बसंती देवी की अटूट आशा की कहानी आज भी गूंजती रहती है। अपनी आखिरी सांस तक उन्होंने अपने पति, सेना के सिपाही नारायण सिंह की वापसी का इंतजार किया। उन्हें 1968 में हिमाचल प्रदेश के बर्फ से भरे पहाड़ों में भारतीय वायु सेना के विमान की दुर्घटना के बाद लापता घोषित कर दिया गया था। अधिकारियों ने बताया कि उनका शव रविवार को हिमाचल प्रदेश में बरामद किया गया और बुधवार को देहरादून लाया गया।
नारायण के सौतेले बेटे ने बताया कि विमान दुर्घटना के बाद एक आधिकारिक पत्र में नारायण के लापता होने की सूचना परिवार को दी गई। मेरी मां को अपने पति के जिंदा होने का विश्वास था। जब पहला पत्र आया तो वह अंग्रेजी में था। इसे एक स्कूल प्रिंसिपल के पास ले जाया गया। प्रिंसिपल द्वारा पत्र पढ़ने के बाद मेरी मां ने इसे लेने से इनकार कर दिया। वह कहती थीं कि अगर वह मर गया है, तो शव कहां है?
1973 में बसंती के ससुराल वालों ने उनकी शादी नारायण के चचेरे भाई भवान सिंह बिष्ट से तय कर दी। अपने जीवन में एक नया अध्याय शुरू के बावजूद बसंती का दिल नारायण से जुड़ा रहा। जयवीर ने बताया कि वह अक्सर मेरी सबसे बड़ी बहन से नारायण के बारे में बात करती थी। शादीशुदा होते हुए भी उसने नारायण के बारे में सोचना या रोना कभी बंद नहीं किया।
वह अक्सर सोचती थी कि अगर वह सचमुच मर गया था तो उसे कोई मुआवजा क्यों नहीं मिला। इस बात ने उसके जिंदा होने की आशा को मजबूत रखा। जयवीर ने कहा कि अब वह अपनी मां की आजीवन भक्ति को देखते हुए अधिकारियों से उचित मुआवजे की अपील करेंगे। जयवीर ने कहा, “वह मेरे जैविक पिता नहीं हो सकते हैं, लेकिन मैं उनके लिए सभी अनुष्ठान करूंगा, क्योंकि मेरी मां ने पूरी जिंदगी उनका इंतजार किया।”
यह त्रासदी 7 फरवरी 1968 की है। 102 यात्रियों को ले जा रहा IAF AN-12 विमान चंडीगढ़ से उड़ान भरने के बाद रोहतांग दर्रे के पास लापता हो गया था। दशकों तक पीड़ितों के मलबे और अवशेष बर्फीले इलाके में खोए रहे।
2003 में एबीवी इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग एंड अलाइड स्पोर्ट्स मनाली के एक अभियान में दक्षिण ढाका ग्लेशियर में विमान का मलबा खोजा गया। पर्वतारोहियों को एक शव के अवशेष भी मिले, जिसकी पहचान बाद में सिपाही बेली राम के रूप में की गई, जो सेना का एक जवान था। 2005, 2006, 2013 और 2019 के खोज अभियानों में पांच शव बरामद किए गए थे।
हालांकि, चंद्रभागा पर्वत अभियान ने चार और शव बरामद किए, जिससे मृतकों के परिवारों और राष्ट्र में नई आशा जगी। देहरादून के रक्षा जनसंपर्क अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल मनीष श्रीवास्तव ने कहा, “जब सेना के डोगरा स्काउट्स के अभियान दल ने ढाका ग्लेशियर से चार शव बरामद किए तो सेना मेडिकल कोर के सिपाही नारायण सिंह की पहचान वर्दी में उनकी पेबुक से की गई। पेबुक में वित्तीय, मेडिकल रिकॉर्ड और पति/पत्नी का नाम होता है। यदि कोई पहचान नहीं होती तो डीएनए प्रोफाइलिंग की आवश्यकता होती।
लेफ्टिनेंट कर्नल ने बताया कि उनका पार्थिव शरीर पहले हिमाचल प्रदेश से चंडीगढ़, फिर चंडीगढ़ से देहरादून लाया गया। यहां से पार्थिव शरीर को रुद्रप्रयाग ले जाया जाएगा, जहां सिविल अस्पताल के शवगृह में रखे जाने से पहले स्थानीय इकाई द्वारा उन्हें सैन्य सम्मान दिया जाएगा। उसके बाद पार्थिव शरीर को सड़क मार्ग से रुद्रप्रयाग से लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित उनके पैतृक गांव ले जाया जाएगा।