Uttarakhand
हाईकोर्ट ने देहरादून नगर निगम के कूड़ा प्रबंधन ठेका निरस्तीकरण पर लगाई रोक…..
खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि पूर्व में 29 अप्रैल 2025 को एकल पीठ ने नगर निगम के निरस्तीकरण आदेश को इस आधार पर निरस्त किया था कि निगम इस प्रक्रिया को पुनः शुरू करेगा। बावजूद इसके, निगम ने कुछ ही दिनों में वही निरस्तीकरण आदेश दोबारा पारित कर दिया, जिसे अदालत ने न्यायिक आदेशों की अवहेलना करार दिया है।
अदालत ने यह भी कहा कि निरस्तीकरण आदेश में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया है। कंपनी को न तो कोई कारण बताओ नोटिस दिया गया और न ही रिकॉर्ड पर कोई स्पष्ट सामग्री रखी गई जिससे यह सिद्ध हो सके कि अनुबंध के कार्यों में कोई कमी पाई गई हो। कोर्ट ने निगम की इस कार्रवाई को ‘प्रशासनिक मनमानी’ बताया।
खंडपीठ ने यह भी सवाल उठाया कि जब निगम के पास वार्डों में मकानों और प्रतिष्ठानों की सटीक संख्या का आंकड़ा ही नहीं है, तो फिर अनुबंध की राशि किस आधार पर तय की गई?
निगम की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि ठेका निरस्तीकरण की कार्यवाही जिलाधिकारी की एक “गुप्त रिपोर्ट” के आधार पर की गई है। इस पर अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को रिपोर्ट उपलब्ध न कराना न्याय की पारदर्शिता के सिद्धांतों के विरुद्ध है। अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी गुप्त रिपोर्ट के आधार पर न तो ठेका निरस्त किया जा सकता है और न ही कंपनी को काली सूची में डाला जा सकता है।
अदालत ने दिनांक 2 मई 2025 को पारित निगम के आदेश पर स्थगन प्रदान करते हुए अगली सुनवाई के लिए 24 जून की तिथि तय की है।