Connect with us

Uttarakhand

विदेशी नस्लों पर भारी पड़ रहा उत्तराखंड पुलिस का ठेंगा, पुलिस ने गली से उठा कर दी थी खास ट्रेनिंग।

Published

on

देहरादून – देश में पुलिस के लिए देसी नस्ल के कुत्तों को पालने पर विचार चल रहा है, लेकिन उत्तराखंड पुलिस इस प्रयोग को चार साल पहले ही कर चुकी है। यह भी कोई विशेष देसी नस्ल पर नहीं, बल्कि गली से उठाए एक कुत्ते को पालकर। इसे नाम दिया गया था ठेंगा।

अब यही ठेंगा एसडीआरएफ के विभिन्न सर्च एंड रेस्क्यू अभियानों में विदेशी नस्ल के कुत्तों पर भी भारी पड़ रहा है। ठेंगा की ट्रेनिंग और पालन पर विदेशी नस्ल की अपेक्षा खर्च भी कम आता है। ठेंगा इस वक्त एसडीआरएफ के पास है। वह हादसे या आपदा के बाद एसडीआरएफ टीम के साथ मौके पर जाता है।

सबसे ज्यादा चुस्त है ठेंगा
ठेंगा के हैंडलर कांस्टेबल शैंलेंद्र ने बताया कि यह विदेशी नस्ल के कुत्तों की अपेक्षा बेहद चुस्त है। इसका आकार छोटा है, इसलिए उसे बाधाओं को पार करने में भी आसानी होती है। जीवित लोगों को खोजने में इसका कोई तोड़ नहीं है। ठेंगा को एक बार वह पंचकुला भी लेकर गए थे। वहां सीआरपीएफ सेंटर में सभी बाधाओं को पार कर ठेंगा ने बेहतर प्रदर्शन किया था। कई बार आपदा के बाद जीवित लोगों को खोजने में अब तक इसका बेहतर प्रदर्शन रहा है।

खर्च और बीमारी भी कम
ठेंगा को अन्य कुत्तों की तरह भोजन आदि दिया जाता है। खास बात है कि इस पर वैक्सीनेशन का खर्च अन्य कुत्तों की अपेक्षा बेहद कम है। चार साल में यह बमुश्किल दो या तीन बार ही बीमार पड़ा है। इसके बाद मामूली इलाज के बाद ही वह ठीक भी हो जाता है। शैलेंद्र ने बताया कि विदेशी नस्ल के कुत्तों को बार-बार वैक्सीन देनी पड़ती है।

ऐसे बना था ठेंगा पुलिस परिवार का हिस्सा
वर्ष 2019 में बम डिस्पोजल स्क्वायड प्रभारी कमलेश पंत की बेटी गली से एक तीन महीने का पिल्ला उठाकर घर ले आई थी। उस वक्त वह गली के आवारा कुत्तों में से ही एक था, लेकिन देखते ही देखते यह अब आम से खास हो चुका है। उसी वक्त कमलेश पंत ने तत्कालीन आईजी संजय गुंज्याल से इस कुत्ते को पुलिस के लिए ट्रेनिंग देने को लेकर बात की। आईजी गुंज्याल ने भी हामी भर दी और अपने खर्च पर इस कुत्ते को छह महीने तक ट्रेनिंग दी। उसे ठेंगा नाम भी दे दिया गया। ठेंगा को सर्च एंड रेक्यू (खोज एवं बचाव) की ट्रेनिंग दी गई थी। उस वक्त ट्रेनिंग देने वालों का दावा था कि जो कुत्ते एक काम को सीखने में महीनों का वक्त लगाते हैं, उसे ठेंगा महज 20 दिनों में ही सीख गया था।

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement