गांधी जी की पहली यात्रा 1929 में हुई थी, जब उन्होंने एक जनसभा को संबोधित किया और सभा में मिली चांदी की डांडी को नीलाम कर 908 रुपए खादी कोष में दे दिए। उन्होंने पहाड़ी जनता को खादी पहनने और आत्मनिर्भर बनने का संदेश दिया।
1946 की यात्रा के दौरान उन्होंने हैप्पी वैली स्थित बिड़ला हाउस में 10 दिन बिताए और मसूरी की प्राकृतिक सुंदरता की सराहना की, लेकिन साथ ही कहा कि “यह जगह गरीबों की नहीं, अमीरों की है।” उन्होंने रिक्शा चलाने वालों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए सामाजिक विडंबना की ओर भी ध्यान दिलाया।
गांधी जी की मुलाकात उस दौरान मशहूर ज्योतिषाचार्य पंडित आरजीआर भारद्वाज से भी हुई थी, जिनकी समयबद्धता की उन्होंने प्रशंसा की।

इसी धरती पर 1963 में लाल बहादुर शास्त्री भी पहुंचे थे। उनका प्रवास ऐतिहासिक सवॉय होटल में रहा, जहां कैप्टन कृपा राम ने उनका आत्मीय स्वागत किया। शास्त्री जी ने होटल कर्मचारियों के साथ फोटो खिंचवाकर विनम्रता और सादगी की मिसाल पेश की।
आज मसूरी को जरूरत है कि इन ऐतिहासिक पलों और नेताओं की शिक्षाओं को संजोया जाए और नई पीढ़ी तक पहुंचाया जाए, क्योंकि यह सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि प्रेरणा की जीती-जागती मिसाल है।