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Uttarakhand

बद्रीनाथ धाम में इसरो के एनआरएससी और आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने शुरू किया भू-गर्भीय सर्वेक्षण।

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चमोली – बदरीनाथ धाम में चल रहे मास्टर प्लान के कार्यों से धाम में होने वाले प्रभावों का आलकन करने के लिए इसरो के एनआरएससी (राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र) हैदराबाद और आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों की टीम भू-गर्भीय सर्वेक्षण कर रही है। टीम ने सोमवार से सर्वेक्षण शुरू किया।

बदरीनाथ धाम में मास्टर प्लान के प्रथम चरण के कार्य अंतिम चरण में हैं। इसके बाद द्वितीय चरण के कार्य होने हैं। जिसके तहत मंदिर के 70 मीटर के दायरे में सौंदर्यीकरण का काम किया जाना है। इन कार्यों से धाम की पौराणिक धरोहरों पर कोई विपरीत असर न पड़े इसके लिए भू-वैज्ञानिकों की टीम यहां सर्वे करने पहुंची है।
हैदराबाद से आई पांच सदस्यीय टीम ने रविवार को पहुंचकर सबसे पहले सर्वे के लिए जगह का चिह्नीकरण किया। सोमवार को टीम ने धाम में चिह्नित जगहों पर सर्वे किया। एक टीम ने मंदिर के पीछे नारायण पर्वत की तलहटी पर और दूसरी टीम ने अलकनंदा नदी किनारे सर्वे कार्य किया। सर्वे कार्य मंगलवार को भी जारी रहेगा।
तेज हवा में नहीं उड पाया ड्रोन
टीम को ड्रोन से भी हवाई सर्वेक्षण करना है। सोमवार को टीम ने धाम में ड्रोन उड़ाने की कोशिश की, लेकिन तेज हवा के चलते कई प्रयासों के बाद भी ड्रोन नहीं उड़ पाया। मंगलवार को टीम फिर ड्रोन उड़ाने का प्रयास करेगी।

पीएमओ के निर्देश पर किया जा रहा सर्वे
सर्वे टीम के साथ पहुंचे हेमवती नंदन गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर के भूविज्ञान प्रवक्ता एमपीएस बिष्ट ने बताया कि पीएमओ के निर्देश पर एनआरएससी हैदराबाद की ओर यह सर्वेक्षण किया जा रहा है। एनआरएससी ने मुझसे संपर्क किया जिसके बाद मैं टीम के साथ यहां आया हूं। ड्रोन, थर्मल इमेज, फिजिकल सर्वे आदि की जानकारी एकत्रित कर सरकार को दी जाएगी।

सर्वे में किया जाएगा यह आकनल
मास्टर प्लान के कार्यों से पंच धाराओं को कोई नुकसान तो नहीं हो रहा, इसका आकलन किया जाएगा। इसमें तप्तकुंड के ग्राउंड वाटर चैनल का पता लगाना है। पानी कहां जा रहा है और कितना गहरा है जब तक इसकी जानकारी नहीं मिलेगी तब तक यहां पर खुदाई और निर्माण कार्य करना खतरनाक हो सकता है।

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