Uttarakhand

फौजी और भाई, मां-बहनों ने जेल में काटी रात, 2 साल बाद परिवार को मिली बड़ी राहत

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देहरादून शहर के डोभालवाला निवासी एक फौजी और उनके परिजनों को हल्द्वानी द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश की कोर्ट ने दहेज हत्या के मामले में निर्दोष मानते हुए दोषमुक्त किया है। इस मुकदमे के कारण फौजी, उनका भाई, मां और बहनों को करीब डेढ़ से दो साल जेल भी काटनी पड़ी। 

लालकुआं निवासी फौजी के ससुर ने अपनी बेटी की मौत पर इन सबके खिलाफ दहेज की मांग, उत्पीड़न, मारपीट और प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया था। सेना में जम्मू में तैनात नीरज बोरा पुत्र बिशन सिंह बोरा की ओर से हल्द्वानी कोर्ट में पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राजन सिंह मेहरा ने बताया कि 19 अगस्त 2019 को लालकुआं निवासी दीवान सिंह भंडारी ने अपनी बेटी की शादी नीरज से आर्य समाज मंदिर में की थी। 

शादी के बाद हल्द्वानी में किराए के एक मकान में पत्नी को छोड़कर नीरज जम्मू में अपनी ड्यूटी पर चले गए। कुछ महीने बाद नीरज छुट्टी पर लौटे तो पत्नी को देहरादून डोभालवाला अपने घर ले गए। लालकुआं कोतवाली में दर्ज कराए मुकदमे में दीवान सिंह भंडारी का आरोप था कि ससुराल पहुंचने पर उनकी बेटी को कम दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाने लगा। 

उस पर मायके से दो लाख रुपये लाने को दबाव डाला जा रहा था। उन्होंने दामाद पर नशे में मारपीट करने और पत्नी को छत से नीचे फेंकने का भी आरोप लगाया था। मेडिकल जांच रिपोर्ट में विवाहिता के शरीर में कीटोन नाम के रासायनिक पदार्थ की मात्रा अधिक होने के कारण चक्कर आने और छत से गिरने की बात सामने आई। 

इसके अलावा पुलिस जांच में मृतका की अपने पति अथवा ससुराल के किसी सदस्य से फोन पर बातचीत की सीडीआर भी नहीं मिली। मामले के अनुसार, 15 अप्रैल 2021 को विवाहिता ने आत्महत्या कर ली थी। 

ससुराल पक्ष की ओर से मृतका के फौजी पति समेत उसके परिवार के पांच लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया गया। कोर्ट में अधिवक्ता मेहरा ने 12 गवाह पेश किए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की तीन नजीरें भी पेश कीं। 

कोर्ट केस की सुनवाई में वादी पक्ष के लगाए आरोप साबित नहीं हो पाए। हालांकि इस दौरान सभी आरोपी करीब डेढ़ से दो साल जेल में भी रहे। 30 सितंबर को हल्द्वानी की द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश नीलम रात्रा की कोर्ट ने फौजी नीरज बोरा और उनके सभी आरोपित परिजनों को निर्दोष पाया।

राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने किया था निरीक्षण

पूर्व में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने नैनीताल जिला जेल के निरीक्षण में पाया कि 1906 में बना जेल का भवन काफी पुराना और जर्जर हालत में है। जेल में क्षमता से अधिक कैदियों को रखा गया है। 

वहां निरुद्ध कैदियों के लिए मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। जेल भवन मुख्य सड़क से काफी दूरी पर स्थित है। कैदियों के बीमार होने की स्थिति पर उन्हें समय पर अस्पताल पहुंचाने में दिक्कतें होती है। 

प्राधिकरण ने निरीक्षण के दौरान पाया कि नैनीताल जेल भवन भूगर्भीय दृष्टि से भी संवेदनशील है। यह भवन कभी भी भूस्खलन की जद में आ सकता है। प्राधिकरण की इस निरीक्षण रिपोर्ट का हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए इसे जनहित याचिका के रूप में सुनवाई के लिए स्वीकार किया है।



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