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Uttarakhand

देहरादून में 74 साल का रिकॉर्ड टूटा, बस्तियां तबाह, लोग बेघर

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देहरादून में 74 साल का रिकॉर्ड टूटा, बस्तियां तबाह, लोग बेघर


उत्तराखंड देहरादून में 74 साल की सबसे भीषण बारिश से मचा हाहाकार, लगातार हो रही भारी बारिश ने जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया है। नदी-नाले उफान पर हैं और सड़कों का हाल तालाबों जैसा हो गया है। कई इलाकों में सड़कों पर नदी जैसा मंजर दिख रहा हैउत्तराखंड, देहरादून: उत्तराखंड में इन दिनों मौसम कहर बनकर टूटा है। लगातार हो रही भारी बारिश ने जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया है। नदी-नाले उफान पर हैं और सड़कों का हाल तालाबों जैसा हो गया है। कई इलाकों में सड़कों पर नदी जैसा मंजर दिख रहा है, जहां तेज बहाव में इंसान और मवेशी तक बहते नजर आ रहे हैं। वहीं, सैकड़ों घर पूरी तरह से तबाह हो चुके हैं और लोग डर के साए में जीनेबाढ़ को मजबूर हैं।

देहरादून में टूटा 74 साल का रिकॉर्ड
देहरादून में बीते दिनों 74 सालों की सबसे भारी बारिश दर्ज की गई। इस बारिश ने शहर की तस्वीर ही बदल दी। तमसा, बिंदाल, रिस्पना और सॉन्ग जैसी प्रमुख नदियों का जलस्तर अचानक बढ़ गया, जिससे शहर के कई इलाकों में बाढ़ जैसे हालात बन गए। रिस्पना नदी के उफान से भगत सिंह कॉलोनी, राजीव नगर और दीपनगर में कई घरों को खाली कराना पड़ा। तेज बहाव में कुछ मकान बह गए और कई पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए।

स्थानीय लोगों की आपबीती
दीपनगर की निवासी काजल बताती हैं कि उनका घर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका है। छोटे-छोटे बच्चों के साथ उन्हें पूरी रात जागकर बितानी पड़ती है। राखी नाम की स्थानीय महिला कहती हैं कि उनका घर ढह चुका है और अब वे पड़ोसियों के सहारे रहने को मजबूर हैं।

बच्चों की शिक्षा पर भी असर
दीपनगर में रहने वाले छात्र आयुष और सुभान बताते हैं कि जब नदी का जलस्तर बढ़ता है तो तेज आवाज़ें कई दिनों तक कानों में गूंजती रहती हैं। वे रातभर नहीं सो पाते और सुबह स्कूल जाना पड़ता है। लगातार डर के माहौल में जीने से पढ़ाई पर भी असर पड़ा है।

राजनीतिक उपेक्षा पर उठे सवाल
स्थानीय लोगों का कहना है कि चुनावों के दौरान नेता मलिन बस्तियों में वोट मांगने जरूर आते हैं, लेकिन आपदा के समय कोई हालचाल लेने तक नहीं पहुंचता। अब जब लोगों के सिर से छत तक छिन गई है, तब भी प्रशासन और जनप्रतिनिधि दूर हैं।

निष्कर्ष:
यह सवाल अब बड़ा बन गया है कि क्या गरीब केवल वोट बैंक तक ही सीमित रह गए हैं? और क्या प्रशासन इस आपदा से प्रभावित लोगों को जल्द राहत प्रदान करेगा? उत्तराखंड में भारी बारिश से पैदा हुई स्थिति प्रशासनिक संवेदनशीलता और जिम्मेदारी की कड़ी परीक्षा ले रही है।

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