Uttarakhand

तेरहवीं का सामान लाते वक्त सूरज की मौत, गांववालों का सरकार पर फूटा गुस्सा!

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पिथौरागढ़: कभी किसी के घर में तेरहवीं की तैयारी हो रही थी, और अगले ही पल उसी घर में मातम पसर गया। ये कोई कहानी नहीं, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जनपद के मोना गांव का खौफनाक सच है..एक ऐसा गांव जो आज़ादी के 77 साल बाद भी सड़क जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित है।

1 जुलाई की शाम, 22 वर्षीय सूरज सिंह भंडारी की मौत ने न सिर्फ एक परिवार को उजाड़ दिया…बल्कि पूरे गांव को झकझोर कर रख दिया। सूरज अपनी दादी की तेरहवीं के लिए सामान लेकर पैदल लौट रहा था, जब गांव के पास एक संकरे रास्ते पर उसका पैर फिसला और वह 300 फीट गहरी खाई में गिर गया। उसके साथ चल रहा उसका चचेरा भाई कमल भंडारी उसे गिरते हुए देख सन्न रह गया। उसने तुरंत गांववालों को खबर दी…लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

गांव के लोगों ने बताया कि सूरज तक पहुंचना आसान नहीं था। खाई इतनी गहरी थी और रास्ता इतना खतरनाक, कि उसे निकालने में ग्रामीणों को तीन घंटे से ज्यादा लग गए। रस्सियों के सहारे जब तक सूरज को बाहर निकाला गया और अस्पताल ले जाया गया….तब तक डॉक्टर उसे मृत घोषित कर चुके थे।

सिर्फ सूरज नहीं गया… सवाल भी पीछे छोड़ गया

गांव की करीब 200 से ज्यादा आबादी, वर्षों से सड़क के लिए गुहार लगा रही है। पाताल भुवनेश्वर से महज़ 2 किलोमीटर दूर स्थित यह गांव आज भी सड़क से नहीं जुड़ा है। ग्रामीण बताते हैं कि इस रास्ते पर पहले भी लोग खाई में गिरकर घायल हो चुके हैं…लेकिन सरकार और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की ओर से अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

नीलम भंडारी पाताल भुवनेश्वर मंदिर समिति के अध्यक्ष, बताते हैं, “जहां सूरज गिरा, वहां पहले भी तीन लोग हादसे का शिकार हो चुके हैं। लेकिन सरकार आंख मूंदे बैठी है। ये सिर्फ एक सड़क नहीं, गांव की ज़िंदगी और मौत का सवाल है।

हमारे बच्चों को क्या मौत के लिए छोड़ दिया गया है?

सूरज की मौत के बाद गांव की महिलाएं जब उसके परिजनों को ढाढ़स बंधाने पहुंचीं, तो उन्होंने वीडियो बनाकर अपना आक्रोश जताया। वीडियो में महिलाएं सरकार और जनप्रतिनिधियों को कोसते हुए कहती हैं…जब चुनाव आते हैं, तो वोट मांगने के लिए ये रास्ता छोटा नहीं लगता। लेकिन सड़क बनवाने की बात आती है तो सब गायब हो जाते हैं।

मुआवजे की मांग, लेकिन सवाल अब भी कायम

नीलम भंडारी ने सरकार से सूरज के परिवार को उचित मुआवजा देने की मांग की है। साथ ही उन्होंने चेताया कि यदि जल्द सड़क निर्माण का कार्य शुरू नहीं हुआ, तो ग्रामीण आंदोलन करने पर मजबूर होंगे।

सरकार को चाहिए कि सुने…समझे और संवेदनशील हो

मोना गांव की यह घटना किसी अकेले परिवार का दर्द नहीं…बल्कि एक पूरे सिस्टम की उदासीनता की तस्वीर है। क्या एक युवक की जान जाने के बाद भी अधिकारी जागेंगे? या फिर अगला सूरज किसी और घर का उजाला बनकर बुझ जाएगा?



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