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घटते जंगल, बढ़ती भीड़ 20 साल में कई गुना बढ़ा खतरा l

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घटते जंगल, बढ़ती भीड़ 20 साल में कई गुना बढ़ा खतरा l




Uttarakhand News: पर्यावरणविद् अवनीश राय बताते हैं कि उत्तराखंड में बीते 20 वर्षों में तकरीबन 1.8 लाख हेक्टेयर जंगलों को काटा गया है, जिसका असर बॉयो डायर्विसीट, स्थानीय मिट्टी की पकड़ से लेकर जल संरक्षण तक पर पड़ा है.

Uttarakhand News: बचपन से हमने पर्यावरण संरक्षण की बातें सुनी हैं, “पेड़ रहेंगे तो हम रहेंगे”। लेकिन क्या विकास की रफ्तार में हम इस बात को भुला चुके हैं? उत्तराखंड इस सवाल का ज्वलंत उदाहरण बनता जा रहा है। इस साल मानसूनी बारिश ने उत्तरकाशी के एक खूबसूरत कस्बे को मलबे में दबा दिया। पर्यावरणविद् और स्थानीय लोग पेड़ों की कटाई और बढ़ते पर्यटन को आपदाओं की मुख्य वजह मान रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी कई लोग पर्यावरण के प्रति उदासीनता को आपदाओं का बड़ा कारण बता रहे हैं।
पर्यावरणविदों की राय:
अवनीश राय के अनुसार, उत्तराखंड में पिछले 20 सालों (2005-2025) में लगभग 1.8 लाख हेक्टेयर जंगल काटे गए हैं। इसका असर न सिर्फ जैव विविधता पर पड़ा है, बल्कि स्थानीय मिट्टी की पकड़, जल संरक्षण और हिमालयी बर्फ के तेजी से पिघलने जैसी गंभीर समस्याएं भी सामने आई हैं। जंगलों के कटने से पहाड़ों की जलधाराएं सूखने लगी हैं, वहीं वन्यजीव आबादी वाले इलाकों की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे जानवरों के हमलों की घटनाएं बढ़ी हैं।
भारी कीमत चुकानी पड़ेगी:
वन विभाग और केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, विकास कार्यों के लिए जंगलों की कटाई को जारी रखने पर स्थानीय मौसम, पारिस्थितिकी तंत्र और प्राकृतिक सुरक्षा पर गहरा असर पड़ेगा। उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग और टिहरी जैसे जिलों में बार-बार लैंडस्लाइड की घटनाएं इसका संकेत हैं। अवनीश राय चेतावनी देते हैं कि यदि जंगल कटने का यह सिलसिला रुका नहीं तो आने वाले समय में भारी तबाही का सामना करना पड़ेगा।
पर्यटन का बढ़ता दबाव:
पर्यटन उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन पिछले 20 वर्षों में यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या 1.5 करोड़ से बढ़कर 5 करोड़ से ऊपर हो गई है। इससे वाहनों की आवाजाही और पर्यटक गतिविधियों ने पहाड़ों पर अत्यधिक दबाव बढ़ा दिया है। उदाहरण के तौर पर, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग मार्ग पर स्थित तोताघाटी क्षेत्र में बड़ी दरारें पड़ना चिंता का विषय बन गया है, जहां हर साल करोड़ों श्रद्धालु और पर्यटक गुजरते हैं।
निष्कर्ष:
विकास की रफ्तार और बढ़ते पर्यटन के बीच अगर पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया गया तो उत्तराखंड जैसे संवेदनशील हिमालयी प्रदेश में आपदाओं का खतरा और बढ़ता रहेगा। अब समय है सतर्कता और संतुलित विकास का ताकि प्राकृतिक सुंदरता और जीवन दोनों को बचाया जा सके।

 





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