Uttarakhand

कुमाऊं में बाघ, तेंदुए और हाथियों की मौत, नालों-नदियों में फंसे कई जानवर l

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तेज बारिश और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं ने कुमाऊं के जंगलों में भारी तबाही मचाई है। इस दौरान बाघ, तेंदुआ और हाथी जैसे दुर्लभ वन्यजीवों की मौत की पुष्टि हुई है।

उत्तराखंड में लगातार हो रही भारी बारिश और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं ने न केवल इंसानी बस्तियों को प्रभावित किया है, बल्कि जंगल भी इसकी चपेट में आ गए हैं। तेज बारिश और उफनते नालों-नदियों के बीच बाघ, तेंदुए और हाथी जैसे कई वन्यजीव मौत के मुंह में समा गए। आपदा ने जंगलों में मातम का माहौल पैदा कर दिया है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि पहले कॉर्बेट टाइगर रिजर्व समेत अन्य इलाकों में वन्यजीवों की मौत आपसी संघर्ष के चलते होती रही है, लेकिन इस बार बारिश और नालों-नदियों में बहने से वन्यजीवों की मौत सामने आ रही है। बादल फटने जैसे हादसों में आमतौर पर ऐसी घटनाएं कम होती हैं। कई मामलों में अभी यह तय किया जाना बाकी है कि जानवरों की मौत सीधे बारिश और बहाव से हुई या अन्य कारणों से।

हाल के मामले:

  • केस 1 (4 सितंबर): बाजपुर की लेवड़ा नदी में पुल के नीचे घायल तेंदुआ मिला। माना जा रहा है कि बाढ़ में बहने से उसे चोटें आईं।

  • केस 2 (6 सितंबर): कोटद्वार के पास मालन नदी में हाथी का बच्चा बह गया था। वन कर्मियों ने रेस्क्यू कर उसे बचाया।

  • केस 3 (9 सितंबर): चंपावत जिले के टनकपुर में बरसाती नाले से तेंदुए का शव बरामद हुआ। प्राथमिक जांच में मौत का कारण बहाव माना जा रहा है।

  • केस 4 (8 सितंबर): रामनगर वन प्रभाग के कालाढूंगी में चकलुआ बीट में सात वर्षीय बाघ का शव नाले में मिला। आशंका है कि बाढ़ में बहने से उसकी जान गई।

इसके अलावा, कोसी नदी से हिरण और हाथियों के फंसे होने के वीडियो भी सामने आए हैं। 3 सितंबर को पांच हिरण नदी के बीच एक टीले पर फंसे थे, जबकि 4 सितंबर को मोहान क्षेत्र में दो हाथी नदी में बहने से बाल-बाल बचे।

विशेषज्ञों का मानना है कि दैवीय आपदा का सबसे ज्यादा असर सरीसृप और उम्रदराज या घायल बाघ-तेंदुओं पर पड़ता है। ऐसे जानवर बहाव का सामना नहीं कर पाते और अक्सर मौत का शिकार हो जाते हैं। अफसोसजनक है कि इस ओर अभी तक पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। मानसून में वन्यजीवों के वासस्थल गंभीर रूप से प्रभावित हो रहे हैं, जिससे हताहत होने का खतरा लगातार बना रहता है।



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